
कमल भारतीय संस्कृति का प्रधान प्रतीक माना जाता है। यह हमारी विराट व प्राचीन हिंदू संस्कृति का प्रमुख अंग है। स्वयं ब्रह्मा जी जिन्होंने सृष्टि की रचना की, भगवान के नाभि कमल से उत्पन्न हुए। कमल का स्थान सृष्टि में सबसे पहले आता हैं। कमल का पुष्प अनासक्त है।
जल में उत्पन्न होने पर भी पानी के ऊपर रहता है। कीचड़ में रहकर भी कमल पुष्प कीचड़ के ऊपर अलिप्त होकर खिलता है। और कीचड़ से भी रमणीयता ग्रहण करता है।
कमल पुष्प प्रकाश का प्राण है,और यह हमें शिक्षा देता है, कि सृष्टि,काल और ज्ञान अनंत है। ऊर्जावान शक्ति के भंडार भगवान् सूर्य जो हमें प्रकाश एवं बुद्धि प्रदान करते है, उनकी ओर सदैव मुख किए कमल पुष्प प्रकाश को देखते ही खिल उठता है। कमल पुष्प “तमसो मा ज्योतिर्गमय” के मूल मंत्र का अर्थ बताता है।
कमल की पुष्प की सहस्त्रों पंखुडिया हमें बताती हैं,कि हमारी संस्कृति अनंत पंखुड़ियों युक्त पुष्प है। सर्व ज्ञान दायिनी भगवती सरस्वती का एक नाम “कमल दल बिहारिणी” भी है।
वैदिक पद्धति के अनुसार योगियों द्वारा मनुष्य शरीर के अंतर्गत छह कमल माने हैं। इनमें ऊपर शीर्ष कमल मानव मस्तिष्क के अंतर्गत माना है। शीर्ष कमल को “बुद्धि चक्र” कहा जाता है। जिसके समीप में ब्रह्मरंध्र है। जिसे सहस्रा (जिसके सहस्त्र दल हैं) नाम दिया गया है।
कमल पुष्प हमें शिक्षा देता है, कि अनासक्त रहो, प्रकाश की पूजा करो, अमंगल से मंगल ग्रहण करो, सदैव प्रसन्न होकर ज्ञान ग्रहण करो और जीवन में सत्कर्म करते रहो। यही हमारी महान सनातन हिंदू संस्कृति का मूल तत्व है। कमल में अनंत सौंदर्य है, और सौंदर्य ही दिव्य ज्योति है।