
सेम मुखेम नागराजा का मंदिर
देवभूमि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में स्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थल सेम-मुखेम, जिसे सेम नागराजा के नाम से भी जाना जाता है, यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण और नागराज (शेषनाग) से जुड़ा हुआ है, और इसे उत्तराखंड का पांचवां धाम भी माना जाता है। नागराजा देवता जैसे नाम से ही विदित होता है, कि यह सर्प शेषनाग के परिवार से संबंधित है।
भगवान श्रीकृष्ण का यह प्राचीन मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले के प्रतापनगर इलाके में सेम मुखेम के जंगल में स्थित है। सेम मुखेम को भगवान श्रीकृष्ण की बाल क्रीड़ा स्थल के रूप में भी जाना जाता है। यह गढ़वाल के प्रसिद्ध देवता हैं। भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण के रूप में इनकी गढ़वाल क्षेत्र में सभी जगह मान्यता है। नागराजा देवता को भगवान बद्रीनाथ जी का भी प्रतीक माना गया है।
नागराजा देवता के मंदिर स्थापना के विषय में कोई स्पष्ट तथ्य नहीं है परंतु प्राचीन किदवंतियों के अनुसार यहाँ नागराज देवता जी का प्रादुर्भाव बड़े चमत्कारिक रूप से हुआ। यहां एक सर्प प्रकट हुए जिससे यहां की स्थानीय जनता को भय उत्पन्न हो गया। अतः आकाशवाणी हुई, कि आप लोग भय ना करें यहां मैं हूं और ये सर्प मेरे ही परिवार के लोग है।
सेम मुखेम से भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं की कहानी भी जुड़ी है। दंतकथाओं के अनुसार, बाल रूप में जब भगवान श्री कृष्ण खेल रहे थे, तभी उनकी गेंद यमुना नदी में गिर गई थी और यमुना नदी में कालिया नाग निवास करता था। जब भगवान कृष्ण गेंद को लेने के लिए नदी में गए तो कालिया नाग ने उन पर हमला कर दिया, लेकिन भगवान कृष्ण कालिया नाग पर ही भारी पड़ गए थे।
इसके बाद भगवान कृष्ण ने कालिया नाग को सेम मुखेम जाने को कहा था। कहा जाता है, कि जाते समय कालिया नाग ने भगवान कृष्ण से विनती की थी, कि वो उन्हें सेम मुखेम में दर्शन दें। ऐसा माना जाता है, अंत समय में भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिका छोड़कर उत्तराखंड के रमोला गढ़ी गांव में आकर कालिया नाग को अपने दर्शन दिए थे और वहीं शिला के रूप में स्थापित हो गए थे।
इस मंदिर में श्रद्धालु काल सर्प दोष के निवारण और भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन करने के लिए आते हैं। वहीं कई लोगों का मानना है, कि इस भूमि के भीतर अकूत धन संपदा गड़ी हुई है। जिसकी रक्षा स्वयं नागराज भगवान करते हैं। यदि कोई इस धन को प्राप्त करना चाहता है तो उसे किसी अपने प्रियजन की मनुष्य बलि देनी होगी।
धन के लालच में इतना बड़ा पाप किसी ने भी नहीं किया। नागराज देवता के कीर्तन में भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। नागों के कारण यह पूरा इलाका टिहरी गढ़वाल में प्रसिद्ध है। यहां की यात्रा और पूजा से सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। डोभाल ब्राह्मणों का यह इष्ट देवता है। ऐसा कहा जाता है, कि डोभालो को सर्प के काटने का विष नहीं लगता और यह अनुभूत सत्य है।
भगवान श्रीकृष्ण के इस मंदिर तक पहुंचने का मुख्य पड़ाव टिहरी का लम्बगांव है। यह मंदिर सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। श्रद्धालु लगभग ढाई किलोमीटर पैदल चलकर मंदिर तक पहुंचते है। पुराणों में कहा गया है, कि अगर किसी की कुंडली में काल सर्प दोष है तो इस मंदिर में दर्शन करने से दोष का निवारण हो जाता है।