
(चित्र साभार: वायरल वीडियो का स्क्रीनशॉट)
जम्मू कश्मीर के श्रीनगर स्थित हजरतबल दरगाह परिसर में लगे शिलापट्ट पर अंकित राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न को अराजक तत्वों की भीड़ द्वारा पत्थर से मारकर तोड़े जाने की घटना के बाद पूरे देश में हंगामा खड़ा हो गया है। वहीं इस मामले में पुलिस ने पूछताछ के लिए 26 लोगों को हिरासत में लिया है। बता दें, कि यह घटना बीते शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद सामने आई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और अन्य वीडियो की जांच के आधार पर 26 लोगों को हिरासत में लिया है, हालांकि अभी तक किसी की औपचारिक गिरफ्तारी नहीं हुई है। पुलिस ने इस मामले में बीएनएस की कई धाराओं और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत मुकदमा दर्ज किया है।
इस घटना के बाद बीजेपी के नेताओं ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान और आतंकवाद व अलगाववाद को दोबारा उकसाने का प्रयास बताते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की माँग की है। वहीं जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने वक्फ बोर्ड पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की, कि धार्मिक स्थल पर अशोक चिह्न क्यों लगाया गया, जबकि देशभर के किसी भी धार्मिक स्थान पर ऐसा नहीं होता।
बता दें, कि दरगाह में हाल ही में हुए सौंदर्यीकरण के दौरान एक शिलापट्ट लगाया गया था, जिस पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ का चिह्न बना था। कुछ लोगों ने इसे इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए पत्थरों से तोड़ दिया। उनका कहना था कि धार्मिक स्थल पर किसी भी तरह का प्रतीक या मूर्ति बनाना इस्लाम में मान्य नहीं है।
वहीं वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन और भाजपा नेता दरख्शां अंद्राबी ने इसे संविधान और राष्ट्रीय प्रतीक का अपमान बताते हुए इसे आतंकी मानसिकता से जोड़ते हुए केंद्र सरकार से सख्त कार्रवाई की माँग की है। फिलहाल पुलिस मामले की जाँच कर रही है। हालांकि, अब यह प्रकरण मात्र धार्मिक भावना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान और राजनीतिक मतभेदों से भी जुड़ गया है।
कानून विशेषज्ञों के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल, जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। वहीं अगर प्रतीक का अनुचित उपयोग या तोड़फोड़ की जाती है, तो दो वर्ष की सजा और 5,000 रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है।