
(सांकेतिक चित्र)
एमआरपी से अधिक की कीमत शराब बिक्री करने पर जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने ठेका संचालक को परिवादी से वसूली गई अतिरिक्त 30 रुपये की धनराशि लौटाने के अलावा सात हजार रुपये हर्जाना भरने का आदेश दिए है। इसके साथ ही आबकारी विभाग को कहा है, कि दूषित व्यापार प्रक्रिया अपनाने वाले शराब ठेका संचालक के विरुद्ध एक्शन लिया जाये।
बीते मंगलवार को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष पुष्पेंद्र खरे एवं अल्का नेगी ने मामले की सुनवाई की। परिवादी अजय कौशिक निवासी मियांवाला ने 1 जुलाई 2021 को आयोग में शराब अनुज्ञापी बलवंत सिंह बोरा एवं जिला आबकारी देहरादून के खिलाफ वाद दायर किया था।
परिवादी ने शिकायत में उल्लेख किया, कि उन्होंने 10 अप्रैल 2021 को रिस्पना पुल के पास शास्त्रीनगर में एक अंग्रेजी शराब की दुकान से 150 रुपये एमआरपी का पव्वा खरीदा था। आरोप है, कि सेल्समैन ने एटीएम कार्ड स्वैप करने वाली मशीन के जरिये 180 रुपये काट लिए। उपभोक्ता के विरोध करने पर सेल्समैन उनके साथ गाली-गलौज की और मारपीट पर भी उतारू हो गया।
इस संबंध में पीड़ित ने जिला आबकारी अधिकारी से शिकायत की और ठेका संचालक बलवंत सिंह बोरा को कानूनी नोटिस भी भेजा लेकिन इसका कहीं कोई असर नहीं पड़ा। इसके बाद जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत की। पीड़ित ने दलील दी, कि अवैध वसूली से उनका आर्थिक और मानसिक शोषण हुआ। विरोध करने पर जिस तरह का अभद्र व्यवहार किया, उसका मूल्यांकन शब्दों में नहीं हो सकता।
इस मामले में आबकारी विभाग को भी पक्षकार बनाया था। जिला आबकारी अधिकारी ने जवाब दिया, कि 150 रुपये वाले पव्वे के बदले 180 रुपये की वसूली पूरी तरह प्रतिबंधित है। आयोग ने कहा, कि मौजूदा साक्ष्य और तथ्यों के साथ जिला आबकारी अधिकारी के जवाब से उपभोक्ता के दावों की पुष्टि होती है।
उपभोक्ता फोरम ने ठेका मालिक को 45 दिनों के भीतर अतिरिक्त वसूले गए 30 रुपये के अलावा मानसिक पीड़ा के लिए पांच हजार और मुकदमा खर्च के दो हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। इसके साथ ही आबकारी विभाग को मूल्य से अधिक कीमत पर शराब बेचने वाले ठेका संचालको के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए है।
गौरतलब है, कि प्रदेश में शराब के ठेकों पर एमआरपी से अधिक कीमत की वसूली रोकना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए आबकारी विभाग ने नई नीति के तहत लाइसेंस रद्द करने का प्रावधान कर दिया है, हालांकि उसके बावजूद भी ठेका संचालको की मनमानी निरंतर जारी है। ऐसे में जिला उपभोक्ता आयोग का यह निर्णय शराब विक्रेताओं के लिए बड़ा सबक है।