CM धामी ने प्रदेशवासियों को लोकपर्व इगास की बधाई दी
देवभूमि उत्तराखंड के गढ़वाल पर्वतीय क्षेत्रों की संस्कृति एवं परम्पराएँ अति प्राचीन मानी जाती है। इसी क्रम में लोक पर्व इगास को लेकर पूरे उत्तराखंड में उत्साह है। जिसे आज प्रदेशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। उत्तराखंडी लोकपर्व इगास के शुभ अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी है।
सीएम धामी ने कहा, “देवभूमि उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराएं हमारी पहचान है। जिस प्रकार पूरे देश में सांस्कृतिक गौरव और विरासत का पुनर्जागरण हो रहा है, उसी तरह उत्तराखंडवासी भी अपने लोकपर्व इगास को उत्साह, आस्था और हर्षोल्लास के साथ मना रहे है।”
सीएम धामी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अपने संदेश में लिखा, “हमारी सरकार द्वारा इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है ताकि लोग अपनी जड़ों से जुड़ सकें और अपने परिवार के साथ इस लोकपर्व को परंपरागत रीति से मना सकें। इस पावन अवसर पर ईश्वर से आप सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता हूं।”
समस्त प्रदेशवासियों को इगास पर्व (बूढ़ी दीपावली) की हार्दिक शुभकामनाएं। देवभूमि उत्तराखंड की समृद्ध लोक संस्कृति और परंपराएं हमारी पहचान हैं। जिस प्रकार पूरे देश में सांस्कृतिक गौरव और विरासत का पुनर्जागरण हो रहा है, उसी तरह उत्तराखंडवासी भी अपने लोकपर्व इगास को उत्साह, आस्था और… pic.twitter.com/JcpWMH8qPj
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) November 1, 2025
जानकारी के लिए बता दें, कि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में (बग्वाल) दीपावली के 11 दिवस बीत जाने के बाद ईगास पर्व मनाये जाने की परंपरा है। उत्तराखंड के कई स्थानों में दीपावली के समान मनाये जाने वाले पर्व का पौराणिक महत्व है। मान्यता के अनुसार, ईगास पर श्रीहरि प्रभु शयनावस्था से जाग्रत होते है। इस पावन दिवस पर भगवान नारायण की पूजा-अर्चना की जाती है।
अन्य मान्यताओं के अनुसार मर्यादा पुरषोतम प्रभु श्रीराम रावण का वध एवं चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात् अयोध्या पहुंचने पर नगरवासियों द्वारा संपूर्ण नगर में दीप प्रज्जवलित कर उत्सव मनाकर उनका स्वागत किया था। मान्यताओं के अनुसार, देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में प्रभु श्रीराम के आगमन की सूचना यहाँ के निवासियों को ग्यारह दिन बाद मिली थी।
बताया जाता है, कि प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन का शुभ संदेश प्राप्त होने के उपरांत पर्वतीय क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों द्वारा इस अवसर पर ग्यारह दिन पश्चायत दीपावली के पर्व को हर्षोलास से मनाया था।
दीपावली के ग्यारह दिनों बाद मनाये जाने वाले इगास पर्व से जुड़ी अन्य कथाओं के अनुसार, गढ़वाल राज्य के वीर सेनापति माधो सिंह भंडारी दीपावली के समय युद्ध के मैदान में दुश्मन से लड़ते-लड़ते तिब्बत बॉर्डर से आगे चले गए थे और अपने राज्य नहीं पहुंच पाए थे। जिस कारण स्थानीय नागरिक अत्यंत दुखी थे और इस वजह से राज्य के नागरिकों द्वारा दीपावली का उत्सव नहीं मनाया गया।
जानकारी के अनुसार, सेनापति वीर माधो सिंह भंडारी दीपावली के ठीक ग्यारह दिनों बाद युद्ध भूमि से एकादशी को अपने गृह राज्य लौटे। उस समय तब उनके वापस लौटने की ख़ुशी में ग्रामीणों द्वारा दीपावली का पर्व मनाया गया था, जिसे ईगास के पर्व के रूप में जाना जाता है।
दीपावली के दिन गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों में भैला खेले जाने की परंपरा है। इस कारण यह भी माना जाता है, कि टिहरी जनपद स्थित चंबा के निकट एक गांव का व्यक्ति भैला बनाने हेतु लकड़ी लेने वन में गया था। परन्तु किसी कारणवश वह व्यक्ति दीपावली के दिन तक अपने गांव नहीं लौट पाया था।
ग्रामीणों द्वारा व्यक्ति को खोजने के अनेक प्रयास किये गए, लेकिन गांववालो के सभी प्रयास विफल हो गये और उस व्यक्ति का कुछ भी पता ना चल सका। इस कारण ग्रामीणों ने दीपावली उत्सव नहीं मनाया, फिर अचानक ही वह व्यक्ति 11 दिन बाद गांव वापस लौटा आया। माना जाता है, कि इस कारण गांव वालों ने उस दिन ही बग्वाल (दीपावली) को मनाया था।
महाभारत काल में भी इस प्रकार का वर्णन मिलता है। माना जाता है, कि दीपावली पर्व के दिवस पर पांडवों में भीम एक राक्षस का वध करने हेतु गए थे। फिर जब महाबली भीम ग्यारह दिनों के बाद राक्षस के संहार के पश्चात वापस आये, तो सभी पांडवों द्वारा ने इस दिन दीपावली मनाई थी।
गढ़वाल के कई क्षेत्रों में ईगास बग्वाल को भीम दीवाली के नाम से भी मनाया जाता है। इगास बग्वाल के दिन चीड़ की सूखी लकड़ियों से भैला बनाया जाता है और स्थानीय लोक देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। इस दिन सवर्प्रथम गोवंश की पूजा-अर्चना का विधान है।

