सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति का सूक्ष्म से सूक्ष्म सिद्धांत सम्पूर्णता के साथ कल्याणकारी भी है। प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म में शिखा रखना बौद्धिक तथा शारीरिक विकास के लिए अति महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन काल में यदि किसी की शिखा काट दी जाती थी, तो वह उस व्यक्ति के लिए मृत्युदंड के समान माना जाता था। शिखा बंधन शरीर और मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों को क्षीण होने से बचाता है। जिससे मनुष्य के भीतर आत्मशक्ति का विकास होता है।
मनुष्य के जिस भाग पर शिखा बंधन होता है ,उस स्थान को शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का केंद्र माना जाता है। शिखा बंधन मात्र एक धार्मिक प्रतीक ही नहीं, वरन साथ ही मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है। वर्तमान युवा पीढ़ी की नजर में यह रूढ़ीवाद हैं, परन्तु यह पूर्णत प्रामाणिक वैज्ञानिक सत्य है।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार, परमात्मा की शक्ति इसी मार्ग से मनुष्य के शरीर के भीतर प्रवेश करती है। महान ऋषि-मुनियो, तपस्वी एवं योगियों की आत्मा का महाप्रयाण भी इसी केंद्र से होता है। मनुष्य के शरीर में सुपुम्न्ना नाम की एक नाड़ी व्याप्त होती है। जिसका सिरा मस्तिष्क में जाकर समाप्त होता है। उसके उत्कृष्ट रन्ध्रभाग शिखास्थल के ठीक नीचे विकसित होता है।
मस्तिष्क के इसी केंद्र को ब्रह्मरंध्र कहा जाता है और यही महत्वपूर्ण स्थान मनुष्य शरीर का बुद्धि तत्व का केंद्र है। इस बुद्धि तत्व केंद्र पर शिखा बंधन रखने पर शरीर का तेज निःस्सरण नहीं होने पाता और शिखा द्वारा इसे शरीर में ही रोककर मन, शरीर एवं मस्तिष्क की उन्नति करता है।
सुपुम्न्ना के केंद्रों की रक्षा के लिए ही हमारे महान पूर्वजों ने चोटी रखने का विधान बताया था। शिखा की सहायता द्वारा उसमें नीचे ग्रंथि से जो रस बनकर स्नाइयो द्वारा शरीर में व्याप्त होता है। उससे शरीर बलशाली बनने के साथ उसकी रक्षा भी होती है। जिस कारण मनुष्य दीर्घ जीवी होता है और उसकी ज्ञान शक्ति अक्षुण बनी रहती है।
बौद्धिक जीवन के लिए सिर को बालों से ढककर रखना सदैव आवश्यक माना गया है। प्राचीन काल से ही भारत देश के ऋषि-मुनियों, विद्वान एवं साहित्यकारों ने इसकी उपयोगिता का ज्ञान होने के कारण सदैव सिर के बालों को समुन्नत रखा। भारत में ही नहीं वरन विदेशी विद्वान साहित्यकार, कविवर एवं कला विधाओं के सिर पर बाल बढ़ाकर रखने का यही कारण स्पष्ट है।
शिखा हमारी आर्य जाति की परंपरा का एक विशेष चिन्ह है। इसलिए शारीरिक, बौद्धिक और शारीरिक विकास के लिए शिखा धारण करना प्रत्येक सनातनी के लिए परमआवश्यक है।