यूँ तो हर साल ही होता है नया,
अब जो बीत गया सो बीत गया,
पर नए साल की अनंत खुशियों को,
तुम्हारे साथ ही पाया है मैंने।
साथ न होकर भी साथ होने का,
जो खूबसूरत एहसास दिलाया तुमने,
इन एहसासों का बखान करने के लिए,
शब्दकोष में भी कमी पाया है मैंने।
आशा जब नहीं होती कुछ,
और वो पूरी हो जाती है,
खूबसूरत और बेमिसाल तरीके से,
एक उसी झलक को पाया है मैंने।
किसे पता था हिम्मत बनोगे तुम,
और रामया बनाकर ही मानोगे मुझे,
सोचकर ही तुमसे जुड़ा अपने मन को,
आज बेहद प्रफुल्लित पाया है मैंने।
जज़्बातों में हम दोनों ही कच्चे हैं,
एक स्थिर तो दूजा बेहद चंचल है,
पर बँधकर प्रीत के अनोखे बंधन में,
पूर्णता के एहसास को पाया है मैंने।
अब ये नए साल और हर सफ़र की,
पहल में मेरे साथ यूँ ही खड़े रहोगे तुम,
इस आशा में अपनी हर साँस को,
सदा के लिए तुम्हारा होता पाया है मैंने।
लेखिका – प्रिया कुमारी