(सांकेतिक चित्र)
भाजपा सांसद भीम सिंह ने राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल पेश कर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इस बिल में संविधान की प्रस्तावना से ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द हटाने की मांग की गई है। इसी क्रम में एक बार फिर संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान जोड़े गए ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को लेकर बहस तेज हो गई है।
समाचार एजेंसी पीटीआई की एक्स पोस्ट के मुताबिक, शनिवार (6 दिसंबर 2025) को संविधान की प्रस्तावना से ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द हटाने की मांग करते भाजपा सांसद भीम सिंह ने राज्यसभा में कहा, “ये शब्द आपातकाल के दौरान बिना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जोड़े गए थे और अब इन्हें हटाकर संविधान को उसके मूल रूप में लौटाना आवश्यक है।”
VIDEO | BJP leader Bhim Singh said, “We introduced a bill on Friday to remove the words ‘socialist’ and ‘secular’ from the Preamble of the Constitution. These words were not part of the original Preamble; they were added during the Emergency by the then PM Indira Gandhi. At that… pic.twitter.com/GU00Ie56t7
— Press Trust of India (@PTI_News) December 6, 2025
उन्होंने कहा, कि उद्देश्य बहस शुरू करना है, ताकि देश यह समझ सके, कि प्रस्तावना में जोड़े गए शब्द किस परिस्थिति में आए और अब उन्हें हटाने की जरूरत क्यों महसूस की जा रही है। भाजपा सांसद ने कहा, प्रस्तावना में सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द जोड़ने का निर्णय मजबूरी और तत्कालीन राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया गया था।
राज्यसभा सांसद ने कहा, कि संविधान की संरचना ही देश को धर्मनिरपेक्ष बनाती है, इसलिए अलग से ‘सेक्युलर’ शब्द जोड़ना जरूरी नहीं था। उन्होंने कहा, कि आंबेडकर ने स्पष्ट कहा था, कि भविष्य की पीढ़ियों पर किसी एक आर्थिक या राजनीतिक विचारधारा को थोपना सही नहीं होगा, इसलिए ‘सोशलिस्ट’ शब्द भी आवश्यक नहीं था।
सांसद ने दावा किया, कि सेक्युलर शब्द मुसलमानों को खुश करने और सोशलिस्ट शब्द तत्कालीन सोवियत संघ को खुश करने के लिए जोड़ा गया था। उनके अनुसार इससे केवल भ्रम बढ़ा है, जबकि संविधान खुद ही समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी देता है। उन्होंने कहा, कि शब्द हटाने से किसी मौलिक अधिकार या संवैधानिक प्रावधान पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
उल्लेखनीय है, कि भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्दों का जुड़ना भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक विवादित अध्याय है। सन 1976 में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के शासनकाल में आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन के जरिये संविधान की प्रस्तावना में ये दोनों शब्द जोड़ दिए गए थे।
सेकुलर और समाजवाद शब्द को प्रस्तावना से हटाने की कोई कोशिश होती है तो उस फैसले का जुडिशल प्रक्रिया में जाना तय है। बता दें, कि सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में संविधान में इन दोनों शब्दों की व्याख्या करते हुए इन्हें उचित ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि सोशलिस्ट और सेकुलर केवल शब्द नहीं बल्कि भारतीय संविधान की बुनियादी पहचान हैं।

