
उत्तराखंड राज्य के निर्माण के बाद राज्य के निवासियों ने सोचा था की शायद अब पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी इस नवनिर्मित राज्य के भविष्य निर्माण में अपना योगदान देगी। परन्तु अब जो रिपोर्ट पलायन आयोग ने टिहरी जिले के संदर्भ में प्रस्तुत की है उसके नतीजे पलायन की डरावनी तस्वीर दिखा रहे है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षो में टिहरी जिले में 58 गांव पूरी तरह से ही खाली हो चुके है। और तक़रीबन 71 गांव ऐसे हैं जहां की आबादी का पचास प्रतिशत गांव से पलायन कर चुकी है। और चिंताजनक रूप से करीब करीब 90 हजार लोगों ने अस्थायी या स्थायी रूप से गांव से पलायन कर लिया है। और 19 हजार लोग ऐसे है जो तक़रीबन पूरी तरह से गांव छोड़कर चले गए हैं। उत्तराखंड राज्य में पलायन की सबसे मुख्य कारण आजीविका के साधनो की कमी उभर कर सामने आई है।
टिहरी में पर्यटन की असीम संभावनाएं है टिहरी झील के माध्यम से ही काफी लोगो को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है। लेकिन मात्र सरकारी घोषणाओं में ही टिहरी के पर्यटन का विकास हो रहा है और धरातल में अभी तक सिर्फ आधी अधूरी तैयारियां ही दिखती है। और ऊपर से सरकारों द्वारा उदासीन रवैया जिससे आज यह हालत पैदा हो गए है की पिछले दस सालों में टिहरी से 585 गावो से लगभग 18 हजार से अधिक नागरिक स्थायी रूप से पलायन कर गए है। वही राज्य में मानव विकास सूचकांक में भी टिहरी जनपद सबसे निचले स्थान (13वें)पर है।
राज्य पलायन आयोग ने टिहरी और प्रदेश के बाकी जिलों में पलायन की रोकथाम के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं। जिनमें लघु उधोग, पशुपालन, उधान, व्यावसायिक खेती,और डेयरी उत्पादों पर स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए और अधिक से अधिक युवाओ के स्किल डेवलेपमेंट की जरूरत बताई गई है। पलायन आयोग ने टिहरी बांध झील में मछली पालन शुरू करने की भी सिफारिश की है।