
रामपुर तिराहा कांड, (फोटो साभार : जागरण)
रामपुर तिराहा कांड से जुड़े सरकार बनाम राधा मोहन द्विवेदी मामले में सीबीआई ने दो महिलाओं गवाहों को पुनः गवाही के लिए तलब करने के लिए कोर्ट में प्रार्थना पत्र दे रखा है, लेकिन इस मामले पर बीते गुरुवार को भी सुनवाई के दौरान निर्णय नहीं हो सका।
जानकारी के अनुसार, 1 अक्टूबर 1994 की रात पृथक राज्य की मांग के लिए दिल्ली जा रहे उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को पुलिस ने रामपुर तिराहे पर रोक लिया था। पुलिस फायरिंग में सात आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी, जबकि महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और दुष्कर्म के गंभीर आरोप भी लगे थे। इस मामले में सीबीआई द्वारा हाई कोर्ट के आदेश पर सात मुकदमे दर्ज किये गए थे।
उत्तराखंड संघर्ष समिति के वरिष्ठ अधिवक्ता अनुराग शर्मा ने बताया, कि इस मामले में सीबीआई ने चमोली से आई दो महिला गवाहों को पुनः तलब करने के लिए प्रार्थना पत्र न्यायालय में दे रखा है। उन्होंने बताया, कि एक महिला गवाह ने बहस के दौरान अपने सामने दुष्कर्म होने की बात से इनकार कर दिया था। जबकि दूसरी महिला ने फोटो के जरिए आरोपितों की गलत पहचान की थी।
इसी क्रम में गुरुवार को गवाहों को न्यायालय में पुनः बुलाने के मामले को लेकर सुनवाई हुई। हालांकि न्यायालय ने कोई निर्णय नहीं दिया। इसके चलते कोर्ट ने 16 अक्टूबर की तिथि नियत की है। वहीं सरकार बनाम ब्रज किशोर मामले में कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से बहस जारी है, जबकि एसपी मिश्रा प्रकरण में अभी सुनवाई लंबित है। इन दोनों मामलों में 15 अक्टूबर को सुनवाई होगी।
बता दें, कि रामपुर तिराहा कांड जिसे मुजफ्फरनगर कांड भी कहा जाता है, उत्तराखंड राज्य के गठन के आंदोलन के दौरान 2 अक्टूबर 1994 को घटित एक दुखद घटना थी। मुजफ्फरनगर जिले के रामपुर तिराहे पर उत्तराखंड के हजारों आंदोलनकारियों पर पुलिस और पीएसी ने गोलीबारी की थी, जिससे कई लोगों की जान चली गई थी और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार भी किया गया था।
उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी, जिन पर इस घटना को लेकर गंभीर आरोप लगे थे। इस घटना के बाद उत्तराखंड के लोगों में आक्रोश फैल गया था। इस घटना को उत्तराखंड के इतिहास का काला अध्याय माना जाता है।