
नंदानगर आपदा के बाद युद्धस्तर जारी बचाव अभियान, (फोटो साभार : X@chamolipolice)
उत्तराखंड में मानसून की बारिश ने भारी तबाही मचाई है। चमोली के नंदानगर क्षेत्र में आई आपदा ने कई परिवारों को गहरे जख्म दिए है। चारों तरफ तबाही का मंजर हैं। जगह-जगह बादल फटने की घटना के बाद जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। वहीं चमोली से आई विनाश लीला की तस्वीरों ने रोंगटे खड़े कर दिए है।
चमोली के नंदानगर में जारी रेस्क्यू अभियान के दौरान लगातार शव मिल रहे है। बीते शुक्रवार को खोजबीन टीम ने जब मलबे में दबे तीन शवों को निकला, तो जो तस्वीर जो सामने आई, उसने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया। दरअसल, मलबे से मां और दो बच्चों के शव निकाले गए, तो मौके पर मौजूद हर शख्स इस मंजर को देखकर रो पड़ा।
चमोली शहर से लगभग 50 किमी दूर कुंतरी लगा फाली गांव में आपदा के बाद कई लोग अब तक लापता है। रेस्क्यू टीमें मलबा हटाने और लोगों की तलाश में जुटी हुई है। वहीं स्थानीय ग्रामीण भी पूरी ताकत से खोजबीन अभियान में लगे है। बीते शुक्रवार,19 सितंबर को मलबे में दबे कुंवर सिंह 16 घंटे बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिए गए हैं। लेकिन उनके परिवार को बचाया नहीं जा सका।
ग्रामीणों के अनुसार, जब रेस्क्यू टीम कुंवर सिंह के मकान के अंदर पहुंची, तो कांता देवी अपने दोनों बेटों को सीने से लगाकर मलबे में दबी हुई थी। मानों आखिरी क्षण तक मां ने अपने बच्चों को बचाने का प्रयास किया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। तीनो एक दूसरे से लिपटे हुए थे। दोनों बच्चे विकास और विशाल (10 साल) सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ते थे।
बृहस्पतिवार तड़के पूरा परिवार घर में सो रहा था। तभी आपदा आई और पूरा घर मलबे में दब गया। सुबह जब राहत-बचाव कार्य शुरू शुरू हुआ, तो मकानों से मलबा हटाने पर बचावकर्मियों को एक घर से किसी की आवाज सुनाई दी। जब उन्होंने रोशनदान से कमरे में देखा तो कुंवर सिंह के अंदर होने का पता चला।
जिस पर रेस्क्यू टीम ने तेजी से उन्हें बाहर निकालने का काम शुरू किया। शाम करीब छह बजे कुंवर सिंह को बाहर निकाल लिया गया। कमरे में कुंवर सिंह का आधा शरीर मलबे में दबा हुआ था। चेहरे पर भी मिट्टी जमा थी, लेकिन रोशनदान से उन्हें सांस लेने में मदद मिलती रही।
कुंवर सिंह को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। श्रीनगर मेडिकल कालेज में भर्ती कुंवर सिंह ने स्थानीय ग्रामीणों को बताया, कि सैलाब आने से पहले पत्नी और बच्चो को सुरक्षित घर से बाहर भेज दिया था। हालांकि इसके बाद भी उनकी जान नहीं बच सकी। वहीं पोस्टमार्टम के बाद तीनो का अंतिम संस्कार नंदप्रयाग के चक्रप्रयाग घाट पर नंदाकिनी नदी के किनारे किया गया।