सांकेतिक चित्र
राज्य में कई बच्चे अपनी किताबों से ज्यादा समय मोबाइल पर बिता रहे हैं। मोबाइल फोन के अत्यधिक उपयोग से बच्चे शारीरिक गतिविधियों से दूर हो रहे हैं। साथ ही मोबाइल की लत बच्चों में चिड़चिड़ापन और गुस्से की भावना पैदा कर रही है। अब इसी समस्या के मद्देनजर सरकार बच्चों को मोबाइल से होने वाले नुकसान के बारे में पढ़ाने की तैयारी कर रही है।
शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत के मुताबिक, अधिकतर समय मोबाइल पर रहने से बच्चों के स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। स्कूलों में बच्चों को एसओपी जारी कर बताया जाएगा, कि मोबाइल कितने समय तक देंखे। इससे अधिक समय तक देखने से किस तरह का नुकसान हो सकता है। पाठ्यक्रम में भी इसे जगह दी जाएगी।
हालांकि सरकारी स्कूलों में 12 वीं कक्षा तक मोबाइल लाने पर रोक है, लेकिन अक्सर ये देखने में आया है, कि घर पर कई बच्चे ज्यादात्तर वक्त मोबाइल पर खर्च कर रहे है। वहीं, अभिभावक भी छोटे बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें मोबाइल पकड़ा देते हैं। शिक्षा मंत्री के मुताबिक, कई विकसित देशों ने मोबाइल को लेकर एसओपी जारी की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिक्षा मंत्री की बैठक के दौरान घर में ‘नो मोबाइल जोन’ बनाने व उन्हें इसके द्वारा होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करने को कहा है। वहीं शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक मोबाइल फोन के कारण ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो जाता है। छात्र पढ़ाई शुरू करते हैं, लेकिन संदेशों, गेम या सोशल मीडिया के कारण उनका ध्यान भटकता है।
इसके अलावा मोबाइल फोन के सामने घंटों बिताने से बच्चों का मानसिक विकास बाधित हो सकता है, और वे अन्य गतिविधियों में रुचि खो सकते हैं। इससे थकान, आलस्य और अगले दिन कक्षा में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है। मोबाइल का बच्चों पर कई तरह से नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य, और सामाजिक विकास शामिल हैं।
इसके अलावा अभिभावकों को भी बच्चों के लिए मोबाइल फोन का उपयोग सीमित करना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों के स्क्रीन समय पर भी नजर रखनी चाहिए। साथ ही बच्चों को शारीरिक गतिविधियों, सामाजिककरण और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है।

