
PM मोदी ने 'मन की बात' में हल्द्वानी के दिव्यांग जीवन चंद्र जोशी की अनोखी कला की सराहना की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (25 मई 2025) को रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 122 वें एपिसोड के माध्यम से देश के नागरिकों के साथ संवाद स्थापित किया। मन की बात में पीएम मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर से लेकर खेलो इंडिया, स्वीट रिवोल्यूशन, नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली के काटेझरी गांव में पहली बार बस सर्विस समेत अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर बात करते हुए अपने विचार रखे।
इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में हल्द्वानी निवासी दिव्यांग जीवन चंद्र जोशी की जमकर सराहना करते हुए कहा, “प्यारे देशवासियों आज मैं आपको एक ऐसे शानदार व्यक्ति के बारे में बताना चाहता हूँ, जो एक कलाकार भी है और जीती जागती प्रेरणा भी है। नाम है- जीवन चंद्र जोशी, उम्र 65 साल।”
Uttarakhand's Jeevan Joshi Ji turns dry pine tree bark into beautiful art. Despite polio, he never gave up. #MannKiBaat pic.twitter.com/6JbWaFinK8
— PMO India (@PMOIndia) May 25, 2025
पीएम मोदी ने कहा, कि जीवन जी हल्द्वानी में रहते है। बचपन में पोलियों ने पैरों की ताकत छीनी, लेकिन उनके हौंसले को नहीं छीन पाया। उनके चलने की रफ्तार भले धीमी हो गई, लेकिन उनका मन कल्पना के हर उड़ान उड़ता रहा। इसी उड़ान में जीवन ने एकमुखी कला को जन्म दिया। नाम रखा- बगेट।
प्रधानमंत्री ने बताया, चीड़ के पेड़ से गिरने वाली सूखी छाल से सुंदर कलाकृत्तियां बनाते हैं। वो छाल जिसे आमतौर पर लोग बेकार समझते हैं, जीवन के हाथों में आते ही वह धरोहर बन जाती है। पीएम मोदी ने कहा, कि जीवन जी की हर रचना में उत्तराखंड के मिट्टी की खुशबू होती है। कभी पहाड़ों के वाद्य यंत्र तो कभी लगता है पहाड़ों की आत्मा लकड़ी में समां गई हो। यह जीवन की कल्पना नहीं, बल्कि एक साधना है। उन्होंने अपना जीवन कला में समर्पित कर दिया।
पीएम मोदी के मन की बात में जीवन का नाम आते ही वह अचानक चर्चाओं में आ गए। हर कोई उनके बारे में जानने के लिए बेताब दिखा। वहीं ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अपनी तारीफ सुनकर जीवन चंद जोशी अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। बता दें, कि हल्द्वानी के कटघरिया निवासी 65 वर्षीय जीवन चंद्र जोशी पोलियो से पीड़ित हैं।
गौरतलब है, कि बचपन से ही चलने-फिरने में असमर्थ जीवन चंद्र जोशी भारत के पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें चीड़ के बगेट यानी चीड़ के पेड़ की सूखी छाल पर काम करने के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा सीनियर फेलोशिप से नवाजा जा चुका है। उन्होंने लकड़ी और छाल से जुड़ी कला अपने पिता से सीखी।
जीवन चंद्र जोशी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, कि चीड़ की छाल को लोग आमतौर पर बेकार समझते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी काष्ठकला से लकड़ी में जान डालने का काम किया है। उन्होंने कहा, कि अगर सरकार इस कला को प्रोत्साहन दे, तो पहाड़ों से हो रहा पलायन रुकेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा।
बता दें, कि जीवन चंद्र जोशी श्री बदरीनाथ, श्री केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों की झलक, पारंपरिक ढोल-नगाड़े, बाजा यंत्र, शंख, शिवलिंग, भारत का नक्शा जैसे अनेक कलाकृतियां को चीड़ की छाल में उकेर चुके हैं। उन्होंने अब कुछ स्थानीय बच्चों को भी इसका प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है।