
कश्मीर का पहलगाम, (फोटो साभार: X/@BattaKashmiri)
कश्मीर के पहलगाम में हुए जिहादी आतंकी हमले में जीवित बचने वाले असम विश्वविद्यालय के बंगाली भाषा विभाग के प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य ने बताया, कि अगर उस वक्त मैं कलमा नहीं पढ़ता, तो शायद आज जिंदा नहीं होता। दरअसल, इस बर्बर आतंकी हमले में देबाशीष ने ‘कलमा’ पढ़कर अपनी और अपने परिवार की जान बचाई।
देबाशीष भट्टाचार्य ने न्यूज 18 को बताया, कि आतंकी लोगों से कलमा सुनाने के लिए कह रहे थे। एक आतंकवादी ने उनके बगल में सो रहे एक शख्स को गोली मार दी। इसके बाद वह उनके पास आया और पूछा, “क्या कर रहे हो?” इसके बाद तो उन्होंने और जोर से कलमा पढ़ना शुरु कर दिया। कलमा सुनकर आतंकवादी उन्हें छोड़कर आगे बढ़ गया।
प्रोफेसर भट्टाचार्य ने कहा, कि आतंकी के चले जाने के बाद वो मौका देखकर वहां से उठे और चुपचाप पत्नी और बेटे के साथ तेजी से बाड़ की तरफ चलने लगे। उन्होंने बताया, कि हम तुरंत ऊपर चढ़े, एक बाड़ को पार कर बदहवास दो घंटे तक चलते रहे। हम रास्ता भटक चुके थे, लेकिन घोड़ों के खुरों के निशानों का देखते हुए आखिरकार हम एक घुड़सवार के पास पहुंचे।
उन्होंने बताया, कि घुड़सवार की सहायता से हम किसी प्रकार अपने होटल पहुंचे। इस दौरान वह बेहद घबराए हुए थे, लेकिन सुरक्षित बचने में कामयाब रहे। रिपोर्ट्स के अनुसार, देबाशीष भट्टाचार्य और उनका परिवार फिलहाल राजधानी श्रीनगर में हैं। प्रोफेसर का कहना है, कि वे जल्द ही अपने घर वापस जाना चाहते हैं और इस खौफनाक घटना को भूलकर अपनी जिंदगी को फिर से शुरू करना चाहते हैं।
बता दें, कि कश्मीर के पहलगाम के पास बैसरन में इस्लामी आतंकियों ने निर्दोष और निहत्थे 26 पर्यटकों समेत कुल 28 लोगों की बेरहमी से हत्या की है। जिहादी मानसिकता वाले आतंकियों ने हिन्दू पहचान पता करके अंधाधुंध फायरिंग की। इस हमले में मरने वालों में कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा, यूपी समेत यूएई और नेपाल के दो विदेशी नागरिक भी शामिल हैं। हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के एक गुट रेजिस्टेंस फ्रंट ने ली है।