
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (फोटो साभार: X_RSSorg)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘100 वर्ष की संघ यात्रा – नए क्षितिज’ में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंच से कहा, कि संघ का रास्ता लालच या पुरस्कार का नहीं, बल्कि सत्य, प्रेम और राष्ट्रहित का है। उन्होंने कहा, कि संघ का काम सात्त्विक प्रेम और आत्मीयता पर टिका है।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अमेरिकी टैरिफ के बाद स्वदेशी के लिए पहल करने की अपील करते हुए सरकार को सुझाव दिया, कि किसी के उकसावे में न आएं। भागवत ने ट्रंप को भी नसीहत देते हुए कहा, कि व्यापार केवल सहमति से होना चाहिए, किसी दबाव में नहीं। इस दौरान उन्होंने लोगों से बाहर के बने उत्पादों की बजाय घर के बने पेय और खाद्य पदार्थों का उपयोग करने की अपील की।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार केवल स्वेच्छा से होना चाहिए, दबाव में नहीं – डॉ. मोहन भागवत जीhttps://t.co/jNEEnFgndV
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संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, कि उपभोक्तावाद की वृद्धि के कारण विश्व में पाप, दुःख और संघर्ष बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, कि वोक कल्चर पूरी दुनिया पर छा रहा संकट है, क्योंकि लोग अपने अलावा किसी दूसरे की ओर नहीं देख रहे हैं। इससे बचने के लिए लोगों को केवल धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए।
उन्होंने कहा, कि भारत एक प्राचीन देश है। इसके नागरिकों को ऐसा जीवन जीना होगा, कि दुनिया के लोग भारत से जीवन का ज्ञान लेने आएं। यही भारत का असली योगदान है। उन्होंने कहा, कि हिंदुत्व का आधार सत्य और प्रेम है। यह सात्त्विक प्रेम ही संघ का मूल है, और यही सोच विश्व को शांति दे सकती है।
आरएसएस प्रमुख ने कहा, “हिंदू राष्ट्र का मिशन क्या है? हमारा हिंदुस्तान, इसका मकसद विश्व कल्याण है। विकास के क्रम में दुनिया ने अपने अंदर खोजना बंद कर कर दिया। अगर हम अपने अंदर खोजें, तो हमें शाश्वत सुख का स्रोत मिलेगा, जो कभी खत्म नहीं होगा। इसे पाना ही मानव जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य है और इसी से सभी सुखी होंगे।”
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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व को भारतीयता का पर्याय बताया। उन्होंने कहा, कि हिंदुत्व सिर्फ एक धर्म नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है। यह सत्य, प्रेम और करुणा पर आधारित है। हिंदुत्व का अर्थ है, सभी को साथ लेकर चलना, न कि किसी को दबाना। भारत की संस्कृति हमेशा से समावेशी रही है। यही वजह है, कि संघ का काम सिर्फ हिंदुओं तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज और विश्व के कल्याण के लिए है।
मोहन भागवत ने कहा, कि समाचारों की दुनिया से भारत को नहीं समझा जा सकता। समाचारों में जितना गलत दिखाई देता है, उससे 40 गुना अधिक अच्छा समाज के बीच हो रहा है। उन्होंने कहा, कि समाज को संगठित करने के लिए जातिगत भेदभाव को यथाशीघ्र समाप्त करना चाहिए। इसके लिए स्वयंसेवकों को अपने आसपास की बस्तियों तक पहुंचना चाहिए।
संघ प्रमुख ने कहा, कि संघ को सदैव विरोध का सामना करना पड़ा है, फिर भी यह संगठन 100 सालों से मजबूती से खड़ा है। उन्होंने स्वयंसेवकों से कहा, कि वे अपने ध्येय पर अडिग रहें। संघ का काम सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ना चाहिए। उन्होंने युवाओं से अपील करते हुए कहा, कि वे संघ के विचारों को समझें और समाज में फैली बुराइयों को दूर करने में योगदान दें।