कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के बढ़ते प्रकोप से निपटने में केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन द्वारा सम्पूर्ण शक्ति लगाने के बाद भी कई इलाको में वायरस से लड़ने के पर्याप्त संसाधन नहीं है। अस्पतालों में बेड-ऑक्सीजन की समस्या से सभी नागरिको को जूझना पड़ रहा हैं। कुछ लोग इस विषम परिस्थिति में भी ऑक्सीजन एवं रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी कर मानवता का असवेंदनशील चेहरा प्रकट कर रहे है। वही 85 साल के बुजुर्ग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्त्ता नारायण भाऊराव दाभाडकर ने बीते दिनों एक युवक की जान बचाने के लिए अपने को मिले अस्पताल के बेड को युवक के लिए छोड़ दिया।
वर्तमान में कोरोना का कहर महाराष्ट्र में जमकर प्रकोप मचा रहा है। महाराष्ट्र का नागपुर शहर कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में से एक बताया जा रहा हैं। नागपुर की स्थिति चिंताजनक बनी हुई हैं,और साथ ही अस्पतालों में बेड और जीवनदायी ऑक्सीजन की कमी भी बनी हुई है। ऐसे में एक घटना नागपुर महानगर पालिका द्वारा संचालित इंदिरा गांधी अस्पताल में सामने आयी हैं। जानकारी के अनुसार विगत 21 अप्रैल को बुजुर्ग नारायण भाऊराव दाभाडकर के शरीर में ऑक्सीजन के स्तर के घटने के बाद उनके दामाद उन्हें अस्पताल में उपचार के लिए पहुंचे। डॉक्टरों ने उनकी जांच के बाद उनकी उम्र का लिहाज कर उन्हें अस्पताल में भर्ती कर लिया।
अस्पताल में ऑक्सीजन युक्त बिस्तरों की कमी थी, परन्तु फिर भी किसी प्रकार उन्हें बेड मिल गया। तभी अस्पताल के गलियारे में बुजुर्ग को किसी प्रकार का शोर-शराबा सुनाई दिया। उस शोर शराबे को ध्यान से सुनने के बाद बुजुर्ग नारायण भाऊराव को यह ज्ञात हुआ,कि किसी 40 वर्षीय व्यक्ति को अस्पताल में ऑक्सीजन युक्त बिस्तर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। उस व्यक्ति की पत्नी और छोटे छोटे बच्चे अस्पताल के कर्मचारियों से एक बेड के लिए विलाप कर रहे हैं। अस्पताल के कर्मचारी भी असहाय थे,क्योकि मरीजों की अधिक संख्या होने के कारण अस्पताल में बिस्तर उपलब्ध नहीं थे।
अस्पताल में एक नौजवान की पत्नी और बच्चो का करुणरुन्दन सुन स्वयं ऑक्सीजन की कमी झेल रहे, बुजुर्ग श्री नारायण भाऊराव क्षण में यह निर्णय कर लिया, कि अस्पताल द्वारा उनके लिए उपलब्ध कराये गए बिस्तर को उस युवक को तत्काल दे दिया जाये। उसके बाद बुजुर्ग अस्पताल में के डॉक्टरों को यह कहते हुए अस्पताल से चले गए, कि “मैं तो अपना जीवन जी चुका हूं,परन्तु इस युवक के सामने अभी सम्पूर्ण जीवन बाक़ी है”। डॉक्टरों को बुजुर्ग ने यह सब लिखित में भी दिया की उन्हें अस्पताल के बस्टर की आवश्यकता नहीं हैं और यह बेड युक्त को दिया जाये। इसके बाद अस्पताल से बुजुर्ग श्री नारायण भाऊराव अपने निवास स्थान पर लौट गए जिसके तीन दिन के उपरांत बुजुर्ग की मृत्यु हो गयी और वे मानवता के इतिहास में अमर हो गए।