पंचतत्व में विलिन हुए दिवाकर भट्ट,(फोटो साभार: X@DM_DEOHaridwar)
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले फील्ड मार्शल के नाम से लोकप्रिय दिवाकर भट्ट का आज बुधवार को राजकीय सम्मान के साथ हरिद्वार के खड़खड़ी श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के अग्रणी नायक दिवाकर भट्ट को श्रद्धांजलि देने के लिए राजनीतिक दलों के कई दिग्गज नेता भी हरिद्वार पहुंचे थे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से जिलाधिकारी मयूर दीक्षित और एसएसपी प्रमेंद्र सिंह डोबाल ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। गार्ड ऑफ ऑनर और अंतिम सलामी देने के बाद राजकीय सम्मान के साथ खड़खड़ी शमशान घाट पर दिवाकर भट्ट का अंतिम संस्कार किया गया। दिवाकर भट्ट के बेटे ललित भट्ट ने उन्हें मुखाग्नि दी।
राज्य आंदोलनकारी और पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट को खड़खड़ी शमशान घाट पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की ओर से जिलाधिकारी मयूर दीक्षित एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रमेंद्र सिंह डोभाल ने उनके प्रार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर उन्हें नमन करते हुए अंतिम विधाई दी गई
#sorrow pic.twitter.com/zWQnLrte89— District Magistrate Haridwar (@DM_DEOHaridwar) November 26, 2025
बता दें, कि पूर्व कैबिनेट मंत्री और राज्य आंदोलन के योद्धा दिवाकर भट्ट ने बीते सोमवार शाम करीब 4:20 बजे हरिद्वार स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। पिछले दस दिनों से उनकी सेहत बेहद नाजुक थी और उन्हें भोजन फूड पाइप के जरिए दिया जा रहा था। दिवाकर भट्ट लंबे समय से बीमार थे और देहरादून के अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था।
दिवाकर भट्ट को फील्ड मार्शल का नाम उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले इंद्रमणि बडोनी ने 1993 में श्रीनगर में हुए पार्टी अधिवेशन में उनके तेवर और आंदोलन के प्रति समर्पण को देखते हुए दिया था। आंदोलन के लिए दिवाकर भट्ट ने श्रीयंत्र टापू या खैट पर्वत जैसे दुर्गम स्थानों को चुना, जहां पर बैठकर उन्होंने तत्कालीन सरकार और पुलिस-प्रशासन के पसीने छुड़ाकर रखे।
आंदोलन में तप कर अपने लोगों के बीच ‘फील्ड मार्शल’ की पहचान बनाने वाले दिवाकर भट्ट की एक आवाज पर सैकड़ों युवा एकत्र हो जाते थे। युवावस्था से ही राज्य आंदोलन में सक्रिय दिवाकर भट्ट 1979 में गठित उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे। मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) के मुख्यमंत्रित्वकाल में जिस सख्त भू-कानून का जिक्र होता है, उसे बनाने में उनका भी अहम योगदान रहा है।

