
कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता यारो, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो। यह मुहावरा चरितार्थ हुआ है
एक 55 वर्ष के जेराल्ड जॉन के साथ, जिन्होंने तक़रीबन तीस सालो तक अपने हक़ की लड़ाई लड़ी एवं अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु राज्य सरकार के सामने अडिग रूप से खड़े रहे।
जानकारी के अनुसार वर्ष 1989 में सीएनआई इंटर कॉलेज द्वारा अध्यापक पद हेतु विज्ञप्ति जारी की गई। नियुक्ति के लिए आवेदनकर्ताओ के साक्षात्कार लिए गए। साक्षात्कार के आधार पर बनी वरीयता सूची में जेराल्ड जॉन ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। परन्तु नियुक्ति दे दी गयी किसी और अध्यापक को। चयन प्रक्रिया में अपनी उपेक्षा से छुब्ध जेराल्ड जॉन द्वारा न्यायलय की ऒर रुख किया गया।
इस क़ानूनी लड़ाई में जेराल्ड जॉन को काफी तकलीफो का सामना करना पड़ा। एक बार उन्हें उच्च न्यायालय में पराजय का मुँह भी देखना पड़ा। परन्तु हिम्मत न हारते हुए उन्होंने अपनी कोशिश जारी रखी। आखिरकार सितम्बर 2018 में उच्च न्यायलय द्वारा जेराल्ड का दावा सही पाते हुए राज्य सरकार को उनकी नियुक्ति के आदेश दिए। इस आदेश के साथ ही जेराल्ड जॉन के नियुक्ति के समय 1989 से वर्त्तमान समय तक का बकाया तक़रीबन डेड करोड़ रुपये चुकाने के आदेश दिए है।
इसके बाद राज्य सरकार द्वारा इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। परन्तु वहा भी उनकी अर्जी ख़ारिज कर दी गयी। नियति के फेर के चलते जो नौकरी जेराल्ड को 1989 में मिल जानी चाहिए थी, वह अब उन्हें 2021 में मिलेगी। इस सम्बन्ध में उत्तराखंड के शिक्षा सचिव द्वारा आदेश जारी कर दिए गए है। जिसके बाद उन्हें सीएनआई कॉलेज में कॉमर्स प्रवक्ता के रूप में नियुक्ति दे दी गयी है।