
1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्र में लगाए गए आपातकाल को असवैधानिक घोषित करने हेतु याचिका पर अब माननीय सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है। इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जबाब माँगा है।
गौरतलब है कि 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को तत्कालीन सरकार द्वारा देश में आतंरिक आपातकाल की घोषण कर दी थी। 19 महीनो तक चले इस आपातकाल में कई नेताओ सहित सरकार का विरोध करने वालो को कारावास में बंद कर दमन किया गया। इसके साथ ही देशवासियो के समस्त अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
अब आपातकाल के 45 वर्षो बाद 94 वर्षीय वीरा सरीन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 1975 में आपातकाल को असवैधानिक घोषित करने की मांग की है। उन्होंने आपातकाल में अपने पति और बच्चो के साथ हुई नाइंसाफी का जिक्र करते हुए अपनी याचिका में कहा है, कि दिल्ली में उनके पति की जैलेर्स एवं अन्य आभूषणो की दो दुकाने हुआ करती थी।
आपातकाल के वक्त उनकी दुकानों पर सरकारी एजेंसी द्वारा छापा मारा जाता है और उन्हें भयभीत कर तस्करी के आरोप में फ़साने की धमकी दी जाती है।उन्हें जल्द से जल्द देश छोड़ने को कहा जाता है। याचिकाकर्ता वीरा सरीन के कहा गया की उनकी दुकानों से जब्त सामान को भी छापा मारने वाले अधिकारीरियो द्वारा हड़प लिया जाता है, और इस घटना से दुखी उनके पति की कुछ दिनों बाद निधन हो जाता है।
पीड़ित महिला पिछले 35 सालो से अपने साथ हुई इस दुखद घटना के लिए 25 करोड़ के हर्जाने की मांग कर रही है। और उससे बढ़कर उनकी मांग है, कि आपातकाल के दौरान देश के नागरिको के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है, इसलिए आपातकाल को असवैधानिक घोषित कर दिया जाये।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने व्यवाहरिक तौर पर 45 वर्षो बाद इस मामले में सुनवाई का कोई ओचित्य नहीं समझा। परन्तु वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दमदार दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में जबाब माँगा है। हरीश साल्वे द्वारा कहा गया कि यह मामला महज जुर्माने का नहीं है। अपितु देश में लगे आपातकाल पर कठोर निर्णय लेने का है, ताकि भविष्य में कोई भी सरकार राष्ट्र के नागरिको के मौलिक अधिकारों को कुचलने का प्रयास ना कर सके।